शायद मेरी बात से तुम सहमत होगे, अगर मैं कहूँ कि साहित्य का उद्देश्य है - खुद अपने को जानने में इंसान की मदद करना, उसके आत्मविश्वास को दृढ बनाना और उसकी सच की खोज को सहारा देना, लोगों की अच्छाइयों का उद्धाटन करना और बुराइयों का उन्मूलन करना, लोगों के हृदय में हयादारी, गुस्सा और साहस पैदा करना, ऊँचे उद्देश्यों के लिए शक्ति बटोरने में उनकी मदद करना और सौंदर्य की पवित्र भावना से उनके जीवन को शुभ्र बनाना। तो यह है मेरी व्याख्या।
जाहिर है कि यह व्याख्या एक खाका भर है और अधूरी है। तुम इसमें जीवन को परिष्कृत करने वाली दूसरी चीजें भी जोड़ सकते हो। लेकिन मुझे यह बताओ - क्या तुम इसे मानते हो?
एक समय था जब, यह धरती लेखनकला-विशारदों, जीवन और मानव-हृदय के अध्येताओं और ऐसे लोगों से आबाद थी, जो दुनिया को अच्छा बनाने की सर्वप्रबल आकांक्षा और मानव-प्रकृति में गहरे विश्वास से अनुप्राणित थे। उन्होंने पुस्तकें लिखीं, जो कभी विस्मृति के गर्भ में विलीन नहीं होंगी, क्योंकि वे अमर सच्चाइयों को अंकित करती हैं और उनके पन्नों से कभी न मलिन होने वाला सौंदर्य प्रस्फुटित होता है।
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