उस दिन अल सुबह जब मैंने चाय की चुस्कियों के साथ अखबार हाथ में उठाया तो मन आनंद से भर उठा। उस दैनिक में एक विज्ञापन छपा था जो काफी बड़ा था। किसी भी पाठक का ध्यान उस ओर आसानी से जा सकता था। विज्ञापन में लिखा था - बेटी है अनमोल, बेटी के बिना आपका जीवन अधूरा है । उसकी शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान दीजिए। और अंत मे लिखा था भ्रूण का लिंग निर्धारण अपराध है।
थोड़ी देर बाद जैसे ही मैंने दूसरा अखबार हाथों में लिया वह पढ़कर खुशी काफूर हो गई। पहले अखबार के विज्ञापन का आनंद मुझे इसलिए भी हुआ होगा क्योकि मैं स्वयं एक लड़की हूँ। और दूसरे अखबार को पढ़कर आनंद इसलिए गुम हो गया क्योकि वह समाचार भी उस विज्ञापन से संबंध रखता था। उस दैनिक में कन्या भ्रूण हत्या पर एक संपादकीय छपा था। संपादकीय ये किसी भी अखबार का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
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