हबीब तनवीर
इप्टा की परम्परा को आगे बढ़ाया
दिसम्बर सर्दियों के दिन थे। कनाट प्लेस में हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। यह 1959 की बात है। सुरेश अवस्थी ने बताया ये हबीब तनवीर है। मैंने देखा सिर पर एक टिपिकल टोपी के साथ वे रेनकोट पहने हुए थे। पहली मुलाकात इस तरह हुई। कु छ समय पहले ही वे इंग्लैण्ड से वापस आए थे। उस समय मोहन राकेश भी साथ थे।
यह बात 1959 की है, फिर तो गोष्ठियों में नेमि जी, सुरेश अवस्थी, मोहन राकेश, कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, प्रयाग शुक्ल के साथ हबीब जी से अक्सर भेंट होने लगी। जोधपुर में इप्टा का सम्मेलन 1970 में हुआ था। उसमें हम तीन दिन साथ-साथ रहे।
उनको बहुत नजदीक से जानने और समझने का अवसर मिला। जोधपुर में उन्होंने ठेठ छत्तीसगढ़ी गीत सुनाए, बहुत अच्छा गाते थे हबीब तनवीर, मैंने आगरा बाजार नाटक सबसे पहले दिल्ली में देखा था। उसी समय 1960 में अल्का जी आए थे। अल्का जी का थियेटर और हबीब जी का थियेटर दोनों साथ-साथ निकले थे। एक ओर अल्का जी शेक्सपीयर से और इंग्लैण्ड से परम्परा लेकर आए थे। दूसरी ओर हबीब तनवीर ने इप्टा की परम्परा को आगे बढ़ाया। - नामवर सिंह
समूचे युग का अंत
हबीब तनवीर जैसा रंग निर्देशक सम्पूर्ण विश्व में दूसरा नहीं। उनकी सबसे बड़ी विलक्षणता यही है कि उन्होंने एक ही दिशा में, एक ही तरह का, एक ही नाटय दल और एक ही अभिनेताओं के समूह के साथ लगभग पांच दशकों तक किया। यह जरूर है कि अंचल विशेष के अभिनेताओं के साथ इस अटूट संबंध ने एक ओर उनके नाटकों को बहुत समर्थ और प्रभावशाली बनाया तो दूसरी ओर उसकी सीमा भी निश्चित कर दी। हबीब तनवीर के निधन से एक समूचे युग का अंत हो गया है। वह भारतीय रंगमंच के युगदृष्टा थे। उनके जैसी प्रतिभा अब कहीं नजर नहीं आती।
- देवेन्द्र राज अंकुर, एनएसडी अध्यक्ष
एक प्रतिबध्द नाटककार
मेरे ख्याल से हबीब तनवीर हमारी लोक परंपरा का बहुत बड़ा हिस्सा थे। वह लोक परंपरा जो हमारे नाटक की लोक शैली से शुरू होकर पारसी रंगमंच और इप्टा के आंदोलन तक चली। हबीब तनवीर इसके वाहक थे। उन्होने जितने नाटक किए उनके केन्द्र में जनता और जनता से जुड़ी समस्याएँ ही रहीं। वे एक प्रतिबध्द नाटककार थे। वे लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता पर पूर्ण विश्वास करते थे। यही मूल्य उनके नाटकों में देखने को मिलते हैं। मैं चाहता हूँ कि हबीब तनवीर के काम को आगे बढ़ाया जाए। नाटक और जनता के बीच जो दूरी आ चुकी है उस दूरी को खत्म किया जाना चाहिए। हिंदी क्षेत्र में नाटक को एक आंदोलन के रूप में स्थापित किया जाना चाहिए, जो कन्नड़, मराठी और बंगला नाटक में जारी है। कन्नड़, मराठी और बंगला नाटक जिस तरह से जनता को प्रभावित करते हैं ऐसा हिंदी नाटक में भी होना चाहिए।
- असगर वजाहत, साहित्यकार
कला समाज के मुखिया थे
हबीब तनवीर न केवल एक ऊँचे दर्जे के अभिनेता और निर्देशक ही नहीं बल्कि पूरे कला समाज के मुखिया थे। हबीब साहब उन लोगों में थे जिनका गहरा रिश्ता सिर्फ थिएटर से नहीं बल्कि सभी कला माध्यमों के लोगों के साथ था और कई पीढ़ियों के लोगों के साथ था। मेरा और उनका रिश्ता बहुत पुराना है। जब हम लोग दिल्ली आए, आगरा बाजार देखा और बाद में उनके सारे नाटक देखे। हमारी मुलाकातें होती रहती थीं। उनसे चर्चा करने का बहुत लाभ हम सबको होता था। मैं हमेशा से उनको याद करता ही रहा हूँ, पर आज विशेष रूप से उनकी बहुत सारी बातें याद आ रही हैं। उन जैसे व्यक्ति कम ही होते हैं। मैं ऐसी उम्मीद करता हूँ कि उनका काम, उनका योगदान बहुत दिनों तक याद रखा जाएगा। उन्होंने लोक कलाकारों के माध्यम से भारतीय रंगमंच में नया प्रयोग कर नई ऊँचाई प्रदान की। उनके नाम पर एक संस्थान बनाना चाहिए, ताकि उनके नाम की ख्याति और फैले। - प्रयाग शुक्ल, कथाकार और कला समीक्षक हबीब तनवीर एक शताब्दी पुरुष थे। उन्होंने लोक कलाकारों के माध्यम से भारतीय रंगमंच में नया प्रयोग कर नई ऊँचाई प्रदान की।
- रामगोपाल बजाज, पूर्व निदेशक
राष्ट्रीय नाटय विद्यालय
नाटकों के लिए लम्बी कतार लगती
भोपाल में मैं 'निराला सृजनपीठ' में 1994-96 के बीच रहा। और भी कारणों से जब भोपाल में रहा हबीब तनवीर के नाटकों को देखने का अवसर भी मुझे मिला। वहां मैंने देखा भारत भवन में उनके नाटकों की टिकिट के लिए कितनी लम्बी कतार लगती है। भारत भवन के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का एक सुखद शिष्टाचार भी बन चुका था कि उनके नाटकों की लम्बी कतारों में बडे-बड़े लोग स्वयं या उनकी पत्नी, टिकिट खरीदते हुए दिखाई देते थे। यह सब मुझे आश्चर्यचकित करता था।
- विनोद कुमार शुक्ल
सृजनात्मकता के क्षेत्र में खालीपन
श्री तनवीर ने भारतीय रंगमंच की दुनिया में कई तरह के प्रयोग किए और लोक को स्थापित किया। उन्होंने परंपरा और आधुनिकता के संगम से रंगमंच को नई शब्दावली दी। उनके निधन से सृजनात्मकता की दुनिया में एक खालीपन आ गया है।
- अशोक वाजपेयी, साहित्यकार
इप्टा की परम्परा को आगे बढ़ाया
दिसम्बर सर्दियों के दिन थे। कनाट प्लेस में हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। यह 1959 की बात है। सुरेश अवस्थी ने बताया ये हबीब तनवीर है। मैंने देखा सिर पर एक टिपिकल टोपी के साथ वे रेनकोट पहने हुए थे। पहली मुलाकात इस तरह हुई। कु छ समय पहले ही वे इंग्लैण्ड से वापस आए थे। उस समय मोहन राकेश भी साथ थे।
यह बात 1959 की है, फिर तो गोष्ठियों में नेमि जी, सुरेश अवस्थी, मोहन राकेश, कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, प्रयाग शुक्ल के साथ हबीब जी से अक्सर भेंट होने लगी। जोधपुर में इप्टा का सम्मेलन 1970 में हुआ था। उसमें हम तीन दिन साथ-साथ रहे।
उनको बहुत नजदीक से जानने और समझने का अवसर मिला। जोधपुर में उन्होंने ठेठ छत्तीसगढ़ी गीत सुनाए, बहुत अच्छा गाते थे हबीब तनवीर, मैंने आगरा बाजार नाटक सबसे पहले दिल्ली में देखा था। उसी समय 1960 में अल्का जी आए थे। अल्का जी का थियेटर और हबीब जी का थियेटर दोनों साथ-साथ निकले थे। एक ओर अल्का जी शेक्सपीयर से और इंग्लैण्ड से परम्परा लेकर आए थे। दूसरी ओर हबीब तनवीर ने इप्टा की परम्परा को आगे बढ़ाया। - नामवर सिंह
समूचे युग का अंत
हबीब तनवीर जैसा रंग निर्देशक सम्पूर्ण विश्व में दूसरा नहीं। उनकी सबसे बड़ी विलक्षणता यही है कि उन्होंने एक ही दिशा में, एक ही तरह का, एक ही नाटय दल और एक ही अभिनेताओं के समूह के साथ लगभग पांच दशकों तक किया। यह जरूर है कि अंचल विशेष के अभिनेताओं के साथ इस अटूट संबंध ने एक ओर उनके नाटकों को बहुत समर्थ और प्रभावशाली बनाया तो दूसरी ओर उसकी सीमा भी निश्चित कर दी। हबीब तनवीर के निधन से एक समूचे युग का अंत हो गया है। वह भारतीय रंगमंच के युगदृष्टा थे। उनके जैसी प्रतिभा अब कहीं नजर नहीं आती।
- देवेन्द्र राज अंकुर, एनएसडी अध्यक्ष
एक प्रतिबध्द नाटककार
मेरे ख्याल से हबीब तनवीर हमारी लोक परंपरा का बहुत बड़ा हिस्सा थे। वह लोक परंपरा जो हमारे नाटक की लोक शैली से शुरू होकर पारसी रंगमंच और इप्टा के आंदोलन तक चली। हबीब तनवीर इसके वाहक थे। उन्होने जितने नाटक किए उनके केन्द्र में जनता और जनता से जुड़ी समस्याएँ ही रहीं। वे एक प्रतिबध्द नाटककार थे। वे लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता पर पूर्ण विश्वास करते थे। यही मूल्य उनके नाटकों में देखने को मिलते हैं। मैं चाहता हूँ कि हबीब तनवीर के काम को आगे बढ़ाया जाए। नाटक और जनता के बीच जो दूरी आ चुकी है उस दूरी को खत्म किया जाना चाहिए। हिंदी क्षेत्र में नाटक को एक आंदोलन के रूप में स्थापित किया जाना चाहिए, जो कन्नड़, मराठी और बंगला नाटक में जारी है। कन्नड़, मराठी और बंगला नाटक जिस तरह से जनता को प्रभावित करते हैं ऐसा हिंदी नाटक में भी होना चाहिए।
- असगर वजाहत, साहित्यकार
कला समाज के मुखिया थे
हबीब तनवीर न केवल एक ऊँचे दर्जे के अभिनेता और निर्देशक ही नहीं बल्कि पूरे कला समाज के मुखिया थे। हबीब साहब उन लोगों में थे जिनका गहरा रिश्ता सिर्फ थिएटर से नहीं बल्कि सभी कला माध्यमों के लोगों के साथ था और कई पीढ़ियों के लोगों के साथ था। मेरा और उनका रिश्ता बहुत पुराना है। जब हम लोग दिल्ली आए, आगरा बाजार देखा और बाद में उनके सारे नाटक देखे। हमारी मुलाकातें होती रहती थीं। उनसे चर्चा करने का बहुत लाभ हम सबको होता था। मैं हमेशा से उनको याद करता ही रहा हूँ, पर आज विशेष रूप से उनकी बहुत सारी बातें याद आ रही हैं। उन जैसे व्यक्ति कम ही होते हैं। मैं ऐसी उम्मीद करता हूँ कि उनका काम, उनका योगदान बहुत दिनों तक याद रखा जाएगा। उन्होंने लोक कलाकारों के माध्यम से भारतीय रंगमंच में नया प्रयोग कर नई ऊँचाई प्रदान की। उनके नाम पर एक संस्थान बनाना चाहिए, ताकि उनके नाम की ख्याति और फैले। - प्रयाग शुक्ल, कथाकार और कला समीक्षक हबीब तनवीर एक शताब्दी पुरुष थे। उन्होंने लोक कलाकारों के माध्यम से भारतीय रंगमंच में नया प्रयोग कर नई ऊँचाई प्रदान की।
- रामगोपाल बजाज, पूर्व निदेशक
राष्ट्रीय नाटय विद्यालय
नाटकों के लिए लम्बी कतार लगती
भोपाल में मैं 'निराला सृजनपीठ' में 1994-96 के बीच रहा। और भी कारणों से जब भोपाल में रहा हबीब तनवीर के नाटकों को देखने का अवसर भी मुझे मिला। वहां मैंने देखा भारत भवन में उनके नाटकों की टिकिट के लिए कितनी लम्बी कतार लगती है। भारत भवन के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का एक सुखद शिष्टाचार भी बन चुका था कि उनके नाटकों की लम्बी कतारों में बडे-बड़े लोग स्वयं या उनकी पत्नी, टिकिट खरीदते हुए दिखाई देते थे। यह सब मुझे आश्चर्यचकित करता था।
- विनोद कुमार शुक्ल
सृजनात्मकता के क्षेत्र में खालीपन
श्री तनवीर ने भारतीय रंगमंच की दुनिया में कई तरह के प्रयोग किए और लोक को स्थापित किया। उन्होंने परंपरा और आधुनिकता के संगम से रंगमंच को नई शब्दावली दी। उनके निधन से सृजनात्मकता की दुनिया में एक खालीपन आ गया है।
- अशोक वाजपेयी, साहित्यकार
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