Tuesday 11 July 2017

He has come back story in hindi

चम्‍पा मावले
उस दिन प्रतिदिन की भांति ही सूरज उगा था और प्रतिदिन की भांति ही अम्मा की दिनचर्या भी प्रारंभ हो चुकी थी। परंतु अम्मा के शरीर में वह उत्साह और वह स्फूर्ति दिखाई नहीं दे रही थी जो मैं हमेशा दिखा करती थी। उसे देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था माने उसका शरीर मन-मन भर भारी हो गया हो और वह उसे चलाने के लिए ठेल रही हो। फिर भी वह अनमने ढंग से अपनी दिनचर्या निपटा रही थी।

वैसे उसने अपने जीवन में कभी हिम्मत नहीं हारी थी। पति से बिछड़े कई वर्ष हो गए थे, परंतु वह नौकरी करती थी इसलिए उसे जीवन निर्वाह में कोई कठिनाई नहीं हुई थी। फिर भी अकेली होने के कारण अपने दायित्व निर्वाह में कुछ अड़चनें तो आई ही थीं, जिसे उसने आसानी से हटा लिया था।

सच पूछो तो वह अकेली थी ही कहाँ। उसका अपना बेटा विनय जो उसके साथ में था। क्या हुआ जो वह अभी छोटा था परंतु था तो साथ में। औरत के साथ में यदि उसकी संतान हो तो फिर उसे और किसी के सान्निध्य की आकांक्षा नहीं होती। यदि वह सामान्य औरत होती है तो जीने का सहारा मिल जाता है और लक्ष्य भी।

अम्मा को भी अपने जीवन का लक्ष्य मिल गया था, वही उसका सुख था, वही उसका दायित्व था। इसलिए अम्मा अपने पुत्र को एक सक्षम आत्मनिर्भर व्यक्ति बनाने में जुट गई थी। उसने विनय को पढ़ाने-लिखाने में कहीं भी कोताही नहीं बरती थी। विनय तो अपनी अम्मा का आज्ञाकारी बेटा था ही, इसलिए अम्मा को उसे पढ़ाने-लिखाने में कोई कठिनाई नहीं हुई। अन्य माताओं को अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित करने में डांट-डपट भी करनी पड़ती थी, वह एक क्षण को भी व्यर्थ नहीं जाने देतीं थीं। कहते हैं न, बच्चे सुन कर जितना नहीं सीखते उतना देख कर सीखते हैं। विनय अपनी अम्मा को पढ़ते-लिखते देखता ही था, इसलिए वह स्वत: प्रेरित हो कर अध्ययन में लगा रहता था। और एक दिन वह अपनी लगन व परिश्रम के बल पर कम्प्यूटर इंजीनियर बन गया। अम्मा को और क्या चाहिए था। वह अपने बेटे की सफलता से संतुष्ट थी। उसने अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया था। उसे अपने बेटे पर गर्व था। परंतु एक दिन जब विनय ने कहा - अम्मा मुझे प्रायवेट कंपनी में नौकरी तो मिल गई हेै परन्तु मुझे अमेरिका जाना पड़ेगा। सुन कर जैसे अम्मा का संतोष और सुख क्षण भर में ही सूख गया। जिस प्रकार तेज ऑंच पर रखी गई पतीली का पानी निरंतर ऑंच पर रखे होने के कारण सूख जाता है और पतीली पर एक धुंधली सी आकृति छोड़ जाता है, अम्मा के मुख पर भी एक अजीब सी पीड़ा उभर कर रह गई थी, परंतु उसने विनय से कुछ नहीं कहा था। बेटे की इस नौकरी पर खुशी मनाए या गम वह समझ नहीं सकी थी।

यद्यपि वह बौध्दिक स्तर पर बेटे के इस निर्णय को नकार नहीं सकी। उसे पता था कि वर्तमान समय में हमारे देश में उच्च शिक्षा प्राप्त नवयुवकों को नौकरी के अच्छे अवसर कहाँ मिलते हैं भला। इसीलिए उच्च शिक्षित नवयुवकों को दूसरे देशों का मुँह देखना पड़ता है। ऐसा न भी हो तो वर्तमान भौतिकवादी सभ्यता ने नई पीढ़ी को दिग्भ्रमित कर रखा है। इसीलिए वे वैभवपूर्ण जीवन प्राप्त करने के लिए कुछ भी करना चाहते हैं। इसके लिए वे माता-पिता ही क्या अपनी मातृभूमि भी छोड़ने से नहीं चूकते।

आज का युग भौतिकवादी युग है। इस युग ने नवयुवकों को एक शब्द दिया है कैरियर, जो वर्तमान में सभी महत्वकांक्षी युवाओं के मुख से सुनाई देता है। जिसका अर्थ है ऊँची डिग्री, ऊँची नौकरी और ढेर सारा पैसा, इसके लिए भले ही उन्हें ईमान बेचना पड़े या और कुछ।

इस प्रकार की मनोवृत्ति जगाने में विज्ञान की भूमिका कम नहीं है। विज्ञान दिन दूने रात चौगुने वैभव के एक से एक साधनों का निर्माण कर रहा है और विज्ञापन की दुनिया उसका उपभोग करने के लिए ललचा रही है। ऐसे में आज की पीढ़ी यदि बहक रही है तो इसमें उसका क्या दोष ? आखिर सब तो साधु, सन्यासी और त्यागी नहीं होते। साधु संत कहलाने वाले लोग भी जब भौतिक साधनों से अछूते नहीं रह सके हैं तो सामान्य लोगों को क्या कहा जाए।

यही सोच कर अम्मा ने विनय के निर्णय के विरुध्द कुछ नहीं कहा परन्तु मन, मन का क्या करतीं, वह तो बुध्दि की बात मानने को तैयार ही नहीं था। विनय की बात सुन कर उसे एक क्षण के लिए ऐसा लगा जैसे वह चलते-चलते ठोकर खा गई हों। उम्र के इस पड़ाव पर जब हर वृध्द व्यक्ति को किसी न किसी सहारे की, सेवा की आवश्यकता होती है, ऐसी स्थिति में कोई उन्हें छोड़ कर जाने की बात कहे तब, तब क्या कहे और क्या न कहे। माता पिता की ममता कहें या स्वाभिमान कहें वे अपनी संतान की उन्नति में अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए बाधक नहीं बनना चाहते हैं। जो माता पिता अपना सर्वस्व लुटा कर संतान का हित संवर्धन करते हैं वे उनकी उन्नति में रोड़ा कैसे अटकाएं, यही सोच उन्हें चुप रहने के लिए बाध्य करती हैं।

यद्यपि अम्मा को आर्थिक दृष्टि से कोई परेशानी नहीं थी। सर छिपाने के उसका अपना घर भी था परंतु घर केवल भौतिक साधनों से ही तो नहीं बनता। शरीर को संभालने वाले लोग मिल जाते हैं, परंतु मन को कौन संभालेगा। यही सोचते-सोचते अपने आप को बहुत कमजोर महसूस कर रही थी। उसने तो मन ही मन अपना अंतिम उत्तरदायित्व पूर्ण करने का निर्णय ले रखा था। उसने सोच रखा था कि विनय के अपने पैर पर खड़े होने के बाद वह उसका विवाह कर देगी। मैं उन पर आर्थिक बोझ तो हूँ नहीं, इसलिए कैसी भी बहु आए मुझे दो रोटी तो अवश्य सेंक कर देगी। मैं यदि उसके साथ अच्छा व्यवहार करूंगी तो वो क्यों मुझे दुत्कारेगी। उसने सोच रखा था कि वह अपनी बहु की इच्छाओं को समझेगी। वह, उसे वह सारी स्वतंत्रता देगी जो उसे अपने मायके में मिलती रही होगी या उससे भी अधिक जो वांछित हो। परंतु उसे लगा कि वह स्वप्न कदाचित अब शीघ्र पूरा होने वाला नहीं। बहु आ भी जाए तो भी वह अपने पति के साथ रहेगी। तब कैसी स्वतंत्रता और कैसी परतंत्रता।
सोचते-सोचते जैसे अम्मा खामोश हो गई थी। विनय ने माँ को इस तरह खामोश देखा तो बोला - च्अम्मा तुम मेरे निर्णय से खुश नहीं हो क्या ?

अम्मा की चेतना जैसे लौट आई बोली - च्क्यों? ऐसा क्यों पूछ रहे हो ? क्या मैं दुखी दिखाई दे रही हूँ?
विनय - च्दिखाई तो नहीं दे रही हो। मैंने तो ऐसे ही पूछ लिया। विनय ने सच्चाई छिपाते हुए कहा था। थोड़ी देर चुप रहने के बाद उसने कहा - अम्मा मेरे जाने के बाद तुम बिलकुल अकेली नहीं हो जाओगी ?

अम्मा - च्हो तो जाऊँगी - तो

विनय - च्मुझे अच्छा नहीं लग रहा है।

अम्मा मटर छिल रही थी। इसलिए वह सिर झुकाए-झुकाए ही बोली - च्क्यों अच्छा नहीं लग रहा है कभी-कभी हमें वह भी करना पड़ता है जो हमें अच्छा नहीं लगता। और फिर तुम भी तो अच्छी नौकरी पाना चाहते थे न।
विनय - च्पाना तो चाहता था परंतु फिर भी अम्मा तुम ही कहा करती हो न कि अवसर बार-बार दरवाजा नहीं खटखटाता। इसीलिए समय को परखते हुए दरवाजा खोल देना चाहिए।
अम्मा - च्ठीक ही कहा करती हूँ, परंतु खूब पैसा और खूब वैभव की महत्वकांक्षा बहुत ऊँचा और पवित्र लक्ष्य नहीं है। जिसके लिए दरवाजा खोला जाए। व्यक्तित्व के विकास और कैरियर निर्माण का अर्थ केवल आर्थिक क्षेत्र से ही संबंधित नहीं है। व्यक्ति के विकास में चारित्रिक विकास भी समाहित है जिसमें सेवा है, त्याग है, दायित्व भी है।

अम्मा की बात सुन कर विनय उसकी ओर देखने लगा। वह समझ नहीं पाया कि अम्मा कहना क्या चाहती है। उस रात वह काफी रात तक जागता रहा। सोचता रहा। उसे नींद नहीं आ रही थी। वह सोच रहा था कि हम आज के नवयुवक अपना कैरियर बनाने में अपने माता पिता की परेशानियों को भूल जाते हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त करते-करते जीवन का वह बहुमूल्य समय निकल जाता है जिसमें व्यक्ति कर्म क्षेत्र में उतर जाना चाहिए। माता-पिता हमें उच्च शिक्षा देने के लिए न जाने क्या क्या सहते हैं। हम बैठे-बैठे सारी सुविधाओं का उपभोग करते हैं। और जब उनके प्रतिफल का समय आता है तब हम उन्हें, उन्हीं के भरोसे छोड़ कर चले जाते हैं दूसरे नगर में या विदेश में। हम उन्हें बिना पतवार की नाव की तरह वृध्दावस्था की घोर धार में छोड़ देते हैं... परंतु क्या किया जाए।

वह समझ नहीं पा रहा था।

दूसरे दिन वह सो कर उठा तो अम्मा के पीछे पीछे घूमने लगा। अम्मा बेडरूम में गई तो वह भी उसके पीछे गया, चौके में गई तो भी वह पीछे था। यह देख कर अम्मा ने कहा - च्आज तुझे क्या हो गया है रे... तू मेरे पीछे-पीछे क्यों आ रहा है।

विनय - च्क्यों तुझे अच्छा नहीं लग रहा है ?
अम्मा - च्लग रहा है, पर क्यों... तू परसों चला जाएगा इसलिए क्या।
सुन कर विनय की ऑंखों में आंसू आ गए। अम्मा भी गंभीर हो गई। परंतु वातावरण को हल्का बनाने के लिए वह विनय के सिर पर चपत लगाते हुए बोली - च्अच्छा-अच्छा चल नहा धो कर आ मैं तेरे लिए नाश्ता तैयार करती हूँ।

विनय नहा धो कर नाश्ता करके बाहर चला गया। उस दिन विनय देर से घर आया था। भोजन इत्यादि के पश्चात वह अपने कमरे में सोने के लिए चला गया। दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ गया। सुबह के दस भी नहीं बज पाए थे कि वह नित्य कर्म से निवृत्त हो कर तैयार हो गया। अम्मा तब तक चौके में उसके खाने की व्यवस्था कर रही थी। विनय ने अम्मा को आवाज लगाते हुए कहा - च्अम्मा नाश्ता हो या खाना, तैयार हो गया क्या? हो गया हो तो जल्दी दे दे।
अम्मा - च्जल्दी दे दूँ... कहाँ जाना है तुझको?
विनय - च्नौकरी पर।
अम्मा - च्नौकरी पर ? कहाँ ?
विनय ने फाइव स्टार होटल के दरबान की भांति छाती पर हाथ रख कर और झुक कर कहा - यहीं।
विनय – हां, यहीं। फिर कानों को हाथ लगा कर बोला - पर वेतन कम है चलेगा ?
अम्मा बोली - दौड़ेगा।
और पल भर में ही सूखते हुए पेड़ पर हरियाली छा गई।

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