Tuesday 11 July 2017

Empire of Mind Power in hindi



हिंदी अब समूचे विश्व का भ्रमण कर रही है। भारतवंशियों ने विभिन्न देशों में हिंदी की अस्मिता का बनाए रखा है। सबसे अहम बात यह है कि भारतीय संस्कृति और हिंदी भारत की प्रचुर बौद्धिक संपदा के साथ विश्व-यात्रा पर है। यह यात्रा भारत के बाहर नए भारत के अस्तित्व के प्रमाण हैं। मैं अपनी ब्रिटेन-यात्रा के कुछ सुख आपके साथ बांटना चाहता हँ।

यह सुख भारत के बाहर ऐसे देश के भीतर का सुख है जो वर्षों तक हमें और हमारे जैसे अनेक देशों पर राज करता रहा। इन देशों की पूँजी, सांस्कृतिक संपदा और धन-वैभव का संग्रहालय नजर आता है समूचा ब्रिटेन। जब हम लंदन में भारत के कोहिनूर हीरे की नुमाइश के लिए कतारबद्ध होते हैं तब लगता है कि हमारा वैभव यहाँ किले में कैद है और अनेक राजकुमार अपनी बौद्धिक संपदा की पूंजी लेकर ब्रिटेन में अपना राज स्थापित करने और कोहिनूर की भारत वापसी के लिए आ चुके हैं।

इन राजकुमारों में साफ्टवेयर इंजीनियर, चिकित्सकों, व्यापारियों और मेहनतकश भारतीय शामिल हैं। भारतीयता का यह ध्वज ब्रिटेन के अनेक नगरों में लहरा रहा है।

इन राजदरबारों में नवरत्न भी हैं और इन्हीं नवरत्नों में से ब्रिटेन में अपनी विशिष्ट पहचान के साथ विराजमान वहाँ के हिंदी कवियों का भरा-पूरा समाज है । हिंदी कवियों ने ब्रिटेन में हिंदी कविता को भारत की संवेदना और ब्रिटेन के वर्तमान समाज की जटिलताओं के साथ समन्वय के मध्य सेतु के रूप में स्थापित किया है ।

इन कवियों के मध्य जाकर लगा कि हिंदी साहित्य का वैश्विक स्वरूप अपने विराट स्वरूप में पाँव पसार रहा है । ब्रिटेन में अंताक्षरी खेलते समय भारतीय साहित्य के गाने गाते हैं । वे लौटते हैं हमारी सभ्यता-संस्कृति के सुहाने दिनों की ओर । इसीलिए मुझे मारीशस और ब्रिटेन जैसे देशों में नया भारत नजर आता है जो नया होते हुए भी भारतीय अस्मिता-बोध से परिचित है।

बौद्धिक संपदा के पलायन से मैं ज्यादा चिंतित नहीं हँ । मैं इसे पलायन नहीं मानता, जब ब्रिटेन जैसे छोटे से देश के लोगों ने वर्षों पूर्व अपनी बुद्धि के साथ व्यापार और राज करने समूचे विश्व को खंगाल लिया था, तब अरब की संख्या वाले भारत के चाणक्य अगर दुनिया में पैर पसार रहे हैं तो किस बात की चिंता ।
भारतीय इस बात को लेकर भी उदास से रहते हैं कि भारत में सुविधाओं का अभाव है । यह सच है कि यूरोपीय या एशिया के भी छोटे-छोटे देशों ने भौतिक रूप से अपने आप को आधुनिक स्वर्ग बना लिया है लेकिन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से वे भारत का चरण-स्पर्श भी करने का सामर्थ्य नहीं जुटा पाए हैं । ऐसी भौतिक तरक्की का क्या लाभ जहाँ संवेदना का शून्याकाश हो, जहाँ रचनाधर्मिता भारत की ओर निगाह ताकती हो, ऐसे में हम अभाव में बेहतर सृजन का सामर्थ्य रखते हैं और दुनिया के बौद्धिक भूमंडल में कब्जे की ताकत भी रखते हैं ।

भारतवंशियों के प्रणाम के साथ,

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