Tuesday 11 July 2017

about al habib in hindi


अलविदा हबीब साहब


मुंह के थोड़े तिरछे कोण से लगा पाइप, अनूठे अंदाज मे निकलता धुंआ, सिर पर कैप, देखने मे थोड़ा बूढ़ा शरीर पर आवाज ऐसी बुलंद कि नौजवान शरमा जाएं और मंच पर जब यह शख्स प्रस्तुति के लिए उतरे तो तमाम कलाकारों पर ऐसा भारी पड़े कि दर्शक सिर्फ उसकी एक झलक के लिए उमड़ पड़ते थे ।

हिन्दुस्तान मे इस शख्स को हबीब तनवीर के नाम से लोग जानते हैं और थियेटर से जिनका थोड़ा भी परिचय है, उनके लिए वे सदैव आदर के पात्र हबीब साहब हैं पिछले कुछ दिनों से हबीब तनवीर की तबीयत की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी लेकिन उसके प्रशंसकों को उम्मीद थी कि नाटकीय अंदाज में उनकी वापसी हो जाएगी। पर जिदंगी किसी नाटक से कम नहीं है जिसकी भूमिका खत्म हो गई, वह लौटकर नहीं आता ।

उनके नाटकों की धूम देश-विदेश में एक समान रही । किसी महान हस्ती के अवसान पर उसकी जिंदगी भर की उपलब्धियों पर चर्चा होना लाजिमी है, ऐसे में जब हबीब तनवीर के नाटकों बात हो और यह सोचा जाए कि किस नाटक का उल्लेख पहले करें, किसे सबसे प्रसिध्द मानें, तो चयन करना दुरूह कार्य प्रतीत होता है क्योंकि उनका हर नाटक कला का अनुपम नमूना होता था। वे उन लोगों मे से नहीं थे जो जनवादी चोला ओढ़कर सरकारी अनुदान पर क्रांति के नाटक करने का ढोंग रचते हैं उन्होंने थियेटर को सचमुच क्रांति का माध्यम बनाया था।

कुछ यादें : कुछ पुष्प


हबीब तनवीर
इप्टा की परम्परा को आगे बढ़ाया

दिसम्बर सर्दियों के दिन थे। कनाट प्लेस में हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। यह 1959 की बात है। सुरेश अवस्थी ने बताया ये हबीब तनवीर है। मैंने देखा सिर पर एक टिपिकल टोपी के साथ वे रेनकोट पहने हुए थे। पहली मुलाकात इस तरह हुई। कु छ समय पहले ही वे इंग्लैण्ड से वापस आए थे। उस समय मोहन राकेश भी साथ थे।

यह बात 1959 की है, फिर तो गोष्ठियों में नेमि जी, सुरेश अवस्थी, मोहन राकेश, कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, प्रयाग शुक्ल के साथ हबीब जी से अक्सर भेंट होने लगी। जोधपुर में इप्टा का सम्मेलन 1970 में हुआ था। उसमें हम तीन दिन साथ-साथ रहे।

उनको बहुत नजदीक से जानने और समझने का अवसर मिला। जोधपुर में उन्होंने ठेठ छत्तीसगढ़ी गीत सुनाए, बहुत अच्छा गाते थे हबीब तनवीर, मैंने आगरा बाजार नाटक सबसे पहले दिल्ली में देखा था। उसी समय 1960 में अल्का जी आए थे। अल्का जी का थियेटर और हबीब जी का थियेटर दोनों साथ-साथ निकले थे। एक ओर अल्का जी शेक्सपीयर से और इंग्लैण्ड से परम्परा लेकर आए थे। दूसरी ओर हबीब तनवीर ने इप्टा की परम्परा को आगे बढ़ाया। - नामवर सिंह

दिग्गज रंगसाधक का जाना एक अध्याय का अंत


सारी दुनिया में अपने गुण-धर्म को रंगमंच को नया मुहारवा देने वाले पद्मभूषण हबीब तनवीर का निधन बिरादरी व आमजन की नजर में एक अध्याय का अंत है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने तनवीर के निधन पर जारी शोक संदेश में कहा है कि उनके निधन से हिंदी और छत्तीसगढ़ी रंगमंच के एक अत्यंत सुनहरे युग का अंत हो गया।

संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, कृषि मंत्री चन्द्रशेखर साहू ने पद्मभूषण से सम्मानित सुप्रसिध्द रंगकर्मी एवं नाटय निर्देशक श्री तनवीर के निधन पर गहन शोक व्यक्त करते हुए कहा कि श्री तनवीर ने छत्तीसगढ़ की समृध्द कला को रंगमंच के माध्यम से विश्व में ख्याति दिलाई। गर्व की बात है कि श्री तनवीर रायपुर के निवासी थे।

रायपुर के हबीब तनवीर


खामोश हुए रंगमंच के फनकार

रायपुर की साँस और छत्तीसगढ़ की धड़कन हबीब साहब के दिल में बसती थी। अपने शहर रायपुर से भले ही दूर रहे हों, लेकिन इसकी याद हमेशा उनके साथ होती थी। परिवार की खैरियत हो या सहकर्मियों की चिंता, हबीब साहब कायम रखे हुए थे। अपनी जन्म भूमि से बेइंतहा मोहब्बत के साथ शहर में खेले गए नाटकों के मंच को भी वे पूरी शिद्दत से प्यार करते थे।

अपनी राजधानी के इस लाड़ले और प्रतिभाशाली कलाकार की दुनिया से विदाई पर पूरा शहर मानो गुमसुम सा हो गया है। घर में एलबम देखकर उनकी यादों को संजोते रिश्तेदार हो या उनके मार्गदर्शन में काम किए हुए कलाकार, सभी के जेहन में हबीब साहब की यादें ताजा रहेंगी।

रंगमंच के इस मुकम्मल फनकार के रग-रग में रायपुर बसता था। यही कारण है कि दूर जाकर भी अपने शहर से उनकी मोहब्बत हमेशा बरकरार रही। खास होकर भी आम होने की उनकी अदा के सभी कायल थे। उनके हुनर का जादू था कि रंगमंदिर से लेकर साइंस कॉलेज में उनके खेले गए नाटक दर्शकों के दिल में बस गए।

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